गाइड
मार्केटिंग में सेलेक्टिव अटेंशन, डिस्टॉर्शन और रिटेंशन के काम करने का तरीक़ा
मार्केटिंग और एडवरटाइज़िंग में, सेलेक्टिव अटेंशन उस डिग्री के बारे में बताता है जिस पर कंज़्यूमर ऐड और मार्केटिंग मैसेजिंग पर ध्यान देते हैं. लोगों का ध्यान कई डिवाइसों पर बँट जाने के साथ, ब्रैंड मैसेजिंग बनाना पहले से कहीं ज़्यादा अहम हो गया है जो कंज़्यूमर और उनके वैल्यू से जुड़ती है.
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फ़ोन से लेकर टीवी तक और लैपटॉप से लेकर टैबलेट तक, कंज़्यूमर आजकल एक समय में कई स्क्रीन देख रहे होते हैं. अलग-अलग डिवाइस पर आजकल अलग-अलग कॉन्टेंट उपलब्ध है, जहां कंज़्यूमर स्ट्रीम करते हैं, खरीदारी करते हैं, खेलते हैं और सोशलाइज़ करते हैं. eMarketer के 2021 के एक सर्वे में, 52% इंटरनेट यूज़र ने कहा कि वे टीवी पर वीडियो कॉन्टेंट देखने के साथ-साथ अपने स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल करते हैं, 28% ने कहा कि वे साथ-साथ उनके डेस्कटॉप या लैपटॉप का इस्तेमाल करते हैं और 24% ने कहा कि वे साथ-साथ अपने टैबलेट का इस्तेमाल करते हैं. सिर्फ़ 28% ने कहा कि वह किसी अन्य डिवाइस का इस्तेमाल नहीं करते. ब्रैंड यह पक्का करना चाहते हैं कि वे कंज़्यूमर से जुड़ रहे हों, भले ही वे कई डिवाइस का इस्तेमाल कर रहे हों. यही वह जगह है जहां हम सेलेक्टिव अटेंशन मार्केटिंग की ओर रुख करते हैं. यह ब्रैंड को ऐसी मैसेजिंग को तैयार करने में मदद करती है जो कंज़्यूमर के लिए स्क्रीन पर फैले अन्य सभी डिस्ट्रैक्शन के बीच सबसे ज़्यादा अहम होती है.
मार्केटिंग में सेलेक्टिव अटेंशन, डिस्टॉर्शन, और रिटेंशन से जुड़ा गाइड
सेलेक्टिव अटेंशन क्या है?
ह्यूमन साइकोलॉजी में, सेलेक्टिव अटेंशन को “एक साथ कई चीज़ों के होने पर किसी एक खास चीज़ पर प्रतिक्रिया करना या प्रतिक्रिया करने की संभावना” कहा जाता है.” दूसरे शब्दों में, सेलेक्टिव अटेंशन का मतलब है कई सारे डिस्ट्रैक्शन के बीच सबसे अहम जानकारी पर ध्यान केंद्रित करने की हमारी क्षमता. उदाहरण के लिए, शोर-शराबे से भरी एक कॉफ़ी शॉप में एक किताब पढ़ना: भले ही आपके आस-पास कई लोग बातचीत कर रहे होंगे, लेकिन आपका ज़्यादातर ध्यान पेज के शब्दों पर होगा.
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मार्केटिंग में सेलेक्टिव अटेंशन क्यों ज़रूरी है?
मार्केटिंग में, सेलेक्टिव अटेंशन का मतलब है कि कंज़्यूमर उन चुनिंदा मैसेजिंग पर ज़्यादा ध्यान देते हैं जो उनकी ज़रूरतों, सोच, रुचियों और वैल्यू से मैच करती हैं. उदाहरण के लिए, अगर कोई कंज़्यूमर टीवी पर शो देखते समय भूखा है और साथ ही अपने फ़ोन पर सोशल मीडिया को स्क्रॉल कर रहा है, तो उसके एक दोस्त द्वारा पोस्ट किए गए हैमबर्गर की तस्वीर पर ध्यान देने की संभावना ज़्यादा हो सकती है.
सेलेक्टिव डिस्टॉर्शन क्या है?
सेलेक्टिव डिस्टॉर्शन का मतलब लोगों की उस आदत से है जिसके तहत वे अपने पहले के अनुभवों और नज़रिए के हिसाब से ही किसी नई जानकारी को भी प्रोसेस करते हैं. उदाहरण के लिए, अगर आप एक कुत्ता प्रेमी हैं और एक कुत्ते से जुड़ी एक फ़िल्म का ट्रेलर देखते हैं, तो आपका उस ट्रेलर को देखने का अनुभव किसी ऐसे व्यक्ति से अलग होगा जो बिल्लियों को पसंद करता है.
मार्केटिंग में सेलेक्टिव डिस्टॉर्शन क्यों अहम है?
मार्केटिंग में सेलेक्टिव डिस्टॉर्शन से मतलब यह है कि कंज़्यूमर किस तरह से ब्रैंड मैसेजिंग को समझते हैं जो उस ब्रैंड के बारे में उनके पिछले नज़रिए से मैच करता है. उदाहरण के लिए, अगर किसी ने किसी लैपटॉप ब्रैंड से खरीदारी की है और उस प्रोडक्ट के साथ उनका अच्छा अनुभव रहा है, तो वे उस ब्रैंड के ऐड को जिस नज़रिए से देखेंगे वह उस व्यक्ति के नज़रिए से अलग होगा जो उस ब्रैंड के बारे में नहीं जानता. सेलेक्टिव डिस्टॉर्शन ऐड को देखने के नज़रिए को कैसे बदल सकता है, यह जानना मार्केटर और एडवरटाइज़र के लिए बहुत अहम है क्योंकि इससे ही वे अपनी ऑडियंस समझ पाते हैं और ऐसी मैसेजिंग दे पाते हैं जो उन ऑडियंस से संबंधित हो और उनके लिए मददगार साबित हो. यही वजह है कि मार्केटिंग और एडवरटाइज़िंग के लिए कस्टमर-सेंट्रिक अप्रोच किसी ब्रैंड की रणनीति का अहम हिस्सा हो सकता है.
सेलेक्टिव रेटेंशन क्या है?
लोग अक्सर उस जानकारी को ज़्यादा याद रखते हैं जो उनकी ज़रूरतों, सोच, रुचियों और वैल्यू के साथ काफ़ी मैच करती है. ऐसी जानकारी याद रहने की इस संभावना को ही सेलेक्टिव रेटेंशन कहते हैं. किसी काल्पनिक फ़िल्म का उदाहरण दें, तो अगर आप एक कुत्ता प्रेमी हैं, तो बिल्लियों को पसंद करने वाले व्यक्ति की तुलना में, आपको कुत्ते से जुड़ी फ़िल्म के ट्रेलर को याद रखने की संभावना ज़्यादा हो सकती है.
मार्केटिंग में सेलेक्टिव रिटेंशन क्यों अहम है?
मार्केटिंग में सेलेक्टिव रिटेंशन से मतलब यह है कि कस्टमर अपनी पहले से तय ज़रूरतों, सोच, रुचियों और वैल्यू के आधार पर ब्रैंड मैसेजिंग को कैसे याद रखते हैं. स्टडी से पता चलता है कि कंज़्यूमर उन ब्रैंड के साथ इंटरैक्ट करना पसंद करते हैं जो उनकी ज़रूरतों, सोच, रुचियों और वैल्यू से मैच करते हैं. Environics Research और Amazon Ads की एक स्टडी के अनुसार, 79% कंज़्यूमर इस बात से सहमत हैं: “मैं ऐसे ब्रैंड के प्रोडक्ट या सर्विस की खरीदारी करना हमेशा पसंद करता/करती हूं जिनकी वैल्यू, मेरे लिए अहम बातों से मिलती हैं.”
उदाहरण के लिए, हाल ही में एक ऐड कैम्पेन में, एक वॉटर ब्रैंड ने ऐसी मैसेजिंग के साथ कस्टम लैंडिंग पेज डेवलप किए जिससे अलग-अलग ज़रूरतों, सोच, रुचियों और वैल्यू के आधार पर अलग-अलग कंज़्यूमर से जुड़ा सके. प्रासंगिक मैसेजिंग के ज़रिए कंज़्यूमर तक पहुंचने से, इस वॉटर ब्रैंड ने ऐड रिकॉल बनाम कैटेगरी बेंचमार्क में +45% की बढ़ोतरी देखी. इस केस स्टडी से पता चलता है कि मार्केटर और एडवरटाइज़र की मैसेजिंग को और यादगार बनाने में मदद करने के लिए, सेलेक्टिव रिटेंशन किस तरह से अहम को सकता है.
सेकंड-स्क्रीन एडवरटाइज़िंग क्या है?
आजकल लोगों का ध्यान कई डिवाइसों पर बंटा होता है. ऐसे में, सेकंड-स्क्रीन एडवरटाइज़िंग एक ऐसा मार्केटिंग कॉन्सेप्ट है जिसमें वह ब्रैंड मैसेजिंग शामिल होती है जो कंज़्यूमर से अलग-अलग अटेंशन पॉइंट पर कनेक्ट करती है. Statista के अनुसार, 2018 से 2022 के बीच, अमेरिका में एक साथ इंटरनेट और टीवी का इस्तेमाल करने वाले यूज़र की संख्या 173.1 मिलियन से बढ़कर 197.3 मिलियन होने का अनुमान है. इंटरनेट का इस्तेमाल करने के साथ-साथ टीवी पर कॉन्टेंट देखना, सेकंड-स्क्रीन के इस्तेमाल का एक उदाहरण है. खरीदारी करते समय फ़ोन का इस्तेमाल करना, सेकंड-स्क्रीन के इस्तेमाल का एक अन्य लोकप्रिय उदाहरण है.
मार्केटर के लिए सेकंड-स्क्रीन एडवरटाइज़िंग का क्या मतलब है?
ब्रैंड के पास सेकंड-स्क्रीन एडवरटाइज़िंग के ज़रिए इन डिवाइस के कंज़्यूमर से जुड़ने का मौका है. Statista के अनुसार, टीवी पर कॉन्टेंट देखते समय स्मार्टफ़ोन यूज़र द्वारा की जाने वाली सबसे लोकप्रिय गतिविधियों में से एक एक्टर, एथलीट, प्लॉटलाइन या टीमों की जानकारी देखना है. स्टडी से यह भी पता चलता है कि सेंकड-स्क्रीन यूज़र के बीच खरीदारी और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना भी लोकप्रिय गतिविधियां हैं. ब्रैंड वहाँ पर ऑडियंस तक पहुँच सकते हैं, जहाँ वे पहले से ही अपना समय बिता रहे हैं. जैसे, किसी स्ट्रीमिंग स्पोर्ट्स इवेंट के दौरान ऐसी एडवरटाइज़िंग करके, जिसका कॉल टू ऐक्शन ऑडियंस को ज़्यादा जानकारी पाने के लिए या ख़रीदारी करने के लिए उनके टैबलेट या फ़ोन का इस्तेमाल करने के लिए कहता है.
ध्यान खींचने वाली इकोनॉमी क्या है?
अटेंशन इकोनॉमी शब्द आँखों और कानों के लिए मल्टीमीडिया प्रतियोगिता के बारे में बताता है, क्योंकि कंज़्यूमर का ध्यान तेज़ी से दुर्लभ चीज़ बन जाता है.
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